Soz e Dil Chahiye Chashm e Nam Chahiye
सोज़े-दील चाहिए, चश्मे-नम चाहिए और शौक़े-तलब मौतबर चाहिए हों मुयस्सर मदीने की गलियाँ अगर आँख काफ़ी नहीं है नज़र चाहिए उन की महफ़िल के आदाब कुछ और हैं लब कुशाई की जुर्रत मुनासिब नहीं उन की सरकार में इल्तिजा के लिए ज़ुंबिशे-लब नहीं, चश्मअे-तर चाहिए अपनी रूदादे-ग़म मैं सुनाऊँ किसे मेरे दुख को कोई और…