mustafa e zate yakta aap hain

मुस्तफ़ा-ए-ज़ाते-यकता आप हैं
यक ने जिस को यक बनाया आप हैं

आप जैसा कोई हो सकता नहीं
अपनी हर ख़ूबी में तन्हा आप हैं

आबो-गील में नूर की पहली किरन
जाने-आदम, जाने-हव्वा आप हैं

ला-मकाँ तक जिस की फैली रौशनी
वो चराग़े-आलम-आरा आप हैं

हुस्ने-आव्वल की नुमूदे-अव्वलीं
बज़्मे-आख़िर का उजाला आप हैं

आप की तलअत ख़ुदा का आईना
जिस में चमके हक़ का जल्वा आप हैं

आप को रब ने किया अपना हबीब
सारी ख़ल्क़त का ख़ुलासा आप हैं

आप की ख़ातिर बनाए दो-जहाँ
अपनी ख़ातिर जो बनाया आप हैं

आप से ख़ुद आप का साइल हुँ मैं
जाने-जाँ मेरी तमन्ना आप हैं

आप की तलअत को देखा जान दी
कब्र में पहुँचा तो देखा आप हैं

बर दरत आमद गदा बहरे-सुवाल
हो भला “अख़्तर” का दाता आप हैं



 

 

 

 

 

 

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